आज दुनिया एक बड़े पैमाने पर प्लास्टिक की समस्या का सामना कर रही है। दुनियभर में आज सालाना 300 मिलियन टन प्लास्टिक का उपयोग हो रहा है। चौंकाने वाली बात तो यह है कि लगभग 8 मिलियन टन यानी 10% प्लास्टिक हमारे महासागरों में पहुंच जाता है, जिससे समुद्री जीवन के लिए खतरा पैदा हो जाता है।
प्लास्टिक प्रदूषण न केवल महासागरों को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि यह कार्बन उत्सर्जन में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है। प्लास्टिक का उत्पादन, उपयोग और डिस्पोजल सालाना 1.8 बिलियन टन कार्बन उत्सर्जन में योगदान देता है।
लेकिन प्लास्टिक का उपयोग बढ़ता क्यों जा रहा है?
दरअसल, उत्पादित कुल प्लास्टिक का आधा हिस्सा एकल-उपयोग (single-use) वाली वस्तुओं के लिए किया जाता, जो हर दिन हमारे द्वारा उत्पन्न कचरे के ढेर को बढ़ाता है। प्रमुख अपराधी है – पैकेजिंग बैग्स जो सम्पूर्ण प्लास्टिक उपयोग में 40% की हिस्सेदार है।
2020 में, बांग्लादेश इस एकल-उपयोग (single-use) प्लास्टिक के खिलाफ कड़ा रुख अपनायाथा। उच्च न्यायालय ने देश भर के तटीय क्षेत्रों और सभी होटलों और मोटलों में सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने का आदेश जारी किया था। बावजूद इसके, बांग्लादेश में प्लास्टिक का उपयोग बढ़ता है गया।
जूट: प्लास्टिक और पॉलिथीन का विकल्प
वैसे तो प्लास्टिक खासकर सिंगल यूज प्लास्टिक से निपटने और पर्यावरण की रक्षा के लिए वैश्विक स्तर पर कई प्रयास किये जा रहे हैं। लेकिन इनमे से ज्यादार विकल्प प्लास्टिक का बस एक अल्टरनेटिव बन कर सामने आ रहे हैं,
दुनिया को प्लास्टिक का एक ऐसा विकल्प चाहिए जो न सिर्फ प्लास्टिक का विकल्प, बलकी प्लास्टिक से मिलने वाले लाभ का भी विकल्प बने। जैसे की वैज्ञानिक मुबारक अहमदखान, एक बांग्लादेशी साइंटिस्ट जिन्होंने प्लास्टिक बैग जैसा हुबहु मेटेरिअल बना डाला है।
इस बैग का नाम है Sonali Bags जिसकी ख़ास बात ये है की इस बैग को जूट से बनाया जाता है। और ऐसा माना जा रहा है ऐसा कर ये जूट उद्योग की सदियों पुरानी विरासत को प्लास्टिक के बायोडिग्रेडेबल विकल्प में बदल सकते है।
मुबारक अहमदखान कई वर्षों से जूट से काफी प्रभावित थे, जूट से क्या बनता है या क्या बनाया जा सकता है? और खासकर क्या इससे प्लास्टिक जैसा मटेरियल बनाया जा सकता है। इन्होने जूट की कई खूबियों को पर्का, और अंत में जूट बैग बना डाला जो की प्लास्टिक बैग का अल्टरनेटिव बन कर उभर रहा है।
ये इनोवेशन इतनी सुर्खिया बटोर रही है की बांग्लादेश सरकार ने इस प्रोजेक्ट में 2 मिलियन डॉलर का निवेश भी करा है। इस निवेश का उद्देश्य जूट में रुचि को फिर से जगाना और इसे प्लास्टिक के स्थायी प्रतिस्थापन के रूप में स्थापित करना है।
जूट का उपयोग: जूट से प्लास्टिक बैग कैसे बनता है?
मुबारक जूट से प्लास्टिक बैग को बनाते जिसे इन्होने “सोनाली बैग” का नाम दिया है, जो प्लास्टिक बैग का एक बायोडिग्रेडेबल विकल्प है। मुबारक इस बैग को लतीफ बावनी मिल के सहयोग से बना रहे हैं जहाँ वे पहले कच्चे जूट को सीधे किसानों से खरीदते हैं।
सबसे पहले, कच्चे जूट के रेशों को 4-मिलीमीटर आकार के टुकड़ों में काटा जाता है और बाद में जूट के इन्ही रेशों को रासायनिक उपचार से गुजरा जाता हैं और पौधे से प्राप्त पॉलिमर और प्राकृतिक रंग के साथ मिलाकर बनाया जाता हैं।
हालाँकि, सोनाली बैग के उत्पादन को पारंपरिक प्लास्टिक बैग और अन्य बायोडिग्रेडेबल विकल्पों की तुलना में हाई कॉस्ट सहित कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
सोनाली बैग की विशेषता: इस बायोडिग्रेडेबल सोनाली बैग की विशेषता ये है की ये बैग मिट्टी में तीन महीने और पानी में आठ घंटे के भीतर decompose हो जाता है। इसके निर्माता का ये भी मानना है की पॉलिथीन बैग जलने के बाद पेट्रोलियम में बदलता है जबकि ये बैग जलने के बाद राख में बदल जाता है जो इस बैग को और ज्यादा ख़ास बनता है।
जूट में क्या है ख़ास?
जूट, जिसे अक्सर “गोल्डन फाइबर” भी कहा जाता है, दक्षिण एशिया में एक ऐतिहासिक उपस्थिति रखता है, जूट का उपयोग कपड़े, मैट और बैग के अलावा कई प्रकार के प्रोडक्ट बनाने के लिए 2,000 से अधिक वर्षों से किया जा रहा है।
हालाँकि, जूट का उपयोग आज भी चीनी, मक्का और ऊन जैसी वस्तुओं की पैकेजिंग और शिपिंग के लिए बड़े पैमाने पर किया जाता है। लेकिन उतना नहीं जितना के पहले किया जाता था।
अपनी प्रमुखता के बावजूद, जूट उद्योग को 1900 के दशक में गिरावट का सामना करना पड़ा था क्योंकि सिंथेटिक सामग्री ने इसकी जगह ले ली। 1970 तक, यह उद्योग अपने चरम पर पहुंच गया था, जिसमें केवल बांग्लादेश में जूट की खेती और प्रोसेसिंग में लगभग 170,000 लोग शामिल थे।
बाद में , राजनीतिक परिवर्तन और प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग ने जूट की मांग को गिराने में योगदान दिया। लेकिन एहि प्लास्टिक एक सिरदर्द बनकर उभर रहा है।